शनिवार, 16 मई 2009

किसी को कुछ नही पता होता है कि जिंदगी का आने वाला पल क्या लेकर आने वाला है ,इसके बावजूद इंसान हमेशा इस बात की हेकडी दिखाता रहता है कि वो सब कुछ जानता है ,लेकिन ऐसा होता नही है , हर किसी को जिंदगी में अगर किसी चीज की खोज होती है तो वह है खुशी , एक ऐसा नाम जिसके पीछे हर कोई दौड रहा है ,ये जानकर भी इस खुशी को पाने के लिए गम कहीं ज्यादा मिलते है ,अगर वो मिलती भई है तो इतनी सारी बाधाए आ जाती है कि उस तक पहुंचते पहुंचते इंसान काफी थक चुका होता है कभी कभी ऐसा भी होता है कि जिस खुशी को पाने के लिए हम पूरी जिंदगी लगा देते है जब वो हमारी जद में होती है तो हमारे हाथों की नसें इतनी कमजोर हो चुकी होती है कि उस खुशी को थामने के लिए वो आगे नही बढ पाते है , एक ऐसा ही दिन था छब्बीस अप्रैल का जब मैं रात को अपने आफिस से काम निपटाकर आखों में कई सपने लिए अपने घर की तरफ बढा जा रहा था कोई चिंता नही थी और न ही दूर दूर तक कोई ऐसी बात थी जिससे मेरी आखे और मेरा दिमाग कुछ नमी का अहसास कर पाता, दूसरे दिन के लिए कई प्लानिंग और भविष्य के लिए कई ख्वाब आखों में लिए मैं अपनी बाइक से बेपरवार आगे बढता चला जा रहा था कि अचानक मेरे फोन की घंटी बजी और मुझे सूचना मिली की मेरी पिता जी अब जिंदगी के उस छोर पर जहां से इस संसार का रिश्ता खत्म हो जाता है ,ये कैसे हो सकता है अभी मैने कल ही तो बात की थी सब कुछ ठीक था फिर ऐसे कैसे हो सकता है लेकिन सत्य यही था कि जो बात मेरे से कही गई थी वही सच था शायद ये मैने नही सोचा था लेकिन ऐसा हो चुका था ,सब कुछ बदल गया था कल की प्लानिंग ,भविष्य के सपने,अब अगर कुछ था तो ये अब नई परिस्थित से कैसे निपटा जाए ,दिमाग ने जो कुछ सोचा था वो सबकुछ बदल चुका था और दिमाग के पन्ने पर कुछ और ही लिखा जा रहा था ,इस के साथ ये भी स्पष्ट हो चुका था कि सिर्फ वही नही होता जो आदमी सोचता है बल्कि बहुत कुछ वो होता है जो आदमी नही सोचता , बहुत सी चीजें ऐसी होती जो होनी तो होती है लेकिन उनके बारे में ये पता नही होता है कि ये कब होनी है ,मतलब आदमी को कुछ पता नही कि कब क्या होना है इसके बाद भी वो कहता है कि उसे सब कुछ पता है

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