बुधवार, 25 मार्च 2009

जब कभी कोई पुरुष किसी औरत को धोखा देता है ,तो ज्यादातर देखा गया है कि उस धोखे के पीछे भी कोई न कोई औरत ही देखी जाती है ,हांलाकि इसका एक पक्ष ये भी होता है कि इस मामले में अगर कोई ठगा जाता है तो वो भी औरत ही होती है,उदाहरण के लिए चांद और फिज़ा का मामला ,चादं का ज़ज्बाती प्यार चांद पर इस कदर सवार हुआ कि उसके लिए उसके बच्चे और उसकी पत्नी उस प्यार के सामने बौने हो गए और जो कुछ भी उनके लिए सर्वोपरि था वो थी फिज़ा ,एक तरफ एक औरत की दुनिया उजड रही थी तो दूसरी तरफ एक औरत को लग रहा था कि इस कारनामें से उसकी दुनिया संवर रही है ,और इन दोंनों के केंद्र मे था एक पुरुष.......जिसे खुद नही मालूम था कि वो क्या कर रहा है ,क्योंकि उस समय उसका न तो दिल काम कर रहा था और न ही दिमाग ,अगर उस समय उसका कुछ काम कर रहा था वो थी उसके अंदर की वो हवस जिसे वो शालीन तरीके से पूरा करना चाहता था और उसने ऐसा किया भी .........कुछ लोगों की ये दलील हो सकती थी कि वो उपमुख्यमंत्री के पद पर थे और अगर वो ऐसा चाहते तो बडे आराम से कर सकते थे।
मागें थे जब उसके लिए जीने के चार पल
तब जीतने के बाद भी हारी थी जिंदगी
आज के पहले ये तुम्हारी थी जिंदगी
हमने तो इसलिए ही संवारी थी जिंदगी
जीना अगर था देखना, तो उस वक्त देखते
सोलह बरस की जब कंवारी थी जिंदगी
जब तक तलब न थी कि मैं जिंदा यहां रहूं
तब तक मेरे इस जिस्म पर भारी थी जिंदगी

सोमवार, 16 मार्च 2009


खुदा ने आदमी भी चीज क्या लोगों बनाई है
गमों के दायरे में आंख जिसकी मुस्कराई है
जिंदगी भी बहुत कुछ दे के उससे छीन लेती है
कभी कर्मों का धोखा है कभी किस्मत पराई है
ये कैसी प्रेम की ज्वाला जलाती है जो अंतर्मन
मिली मथुरा तो राधा मिल सकी न फिर कभी मोहन
यही है सत्य है जीवन का यहां सब कुछ नही मिलता
कभी झूले नही मिलते कभी मिलता नही सावन