गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

मैं आज आपको एक ऐसी व्यक्ति के बारे में बता रहा हूं जिसकी शक्ल में मासूमियत समाई थी जिसके स्वभाव में सरलता इस कदर समाहित थी कि लोग सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि वास्तव में जब हर चीज इतनी कठिनता से मिल रही है तब ऐसे में इसके स्वभाव में इतनी सरलता कैसे ......जिम्मेदारियों को इस कदर निभाने निपुण था कि किसी को उससे कोई शिकायत नही रहती थी ......लेकिन कहा जाता है जब इंसान का स्वार्थ चरम को पहुंचने लगता है तो वही इंसान जिसे लोग भगवान बनकर पूजते वो शैतान बन जाता है और ऐसा ही कुछ इस
इंसान के साथ हुआ .........अच्छा खासा परिवार अकेला वारिस ,घर वालों ने खूब धूमधाम से शादी की मां बाप सभी की चाहत थी कि जल्द ही उनके घऱ में कोई किलकारियों भरने वाला हो......घर के सभी सदस्य उस वक्त का इंतजार कर रहे थे .....कहा जाता है कि जब किसी खुशी की उम्मीद हो और उसका इंतजार किया जाय तो एक एक लम्हा सालो की तरह लगता है .....यहां पर भी वक्त तो गुजर रहा था लेकिन लेकिन जिस उम्मीद से ये उम्मीद लग रही थी कि वो हकीकत में बदलेगी अब वो धीरे धीरे धुंधली पडती जा रही थी और वो हकीकत से दूर होती जा रही थी......मां बाप चाहते थे कि जल्द ही उनके वंश चलाने वाला इस धरती पर अपने नन्हे पैर रखे लेकिन शायद यहां कुछ और ही होना था और वही हुआ ......साल गुजरा दूसरा साल गुजरा और फिर तीसरा साल शुरु हुआ ....लेकिन न तो किलकारी गूंजी और न ही वंश को चलकेकेवाले का घर की बूढी आखों को दीदार हुआ .......ये और बात है कि घर की बूढी आखों की अब तडप बढ गई थी .......हांलाकि इन तीन सालों में भले ही घर में औलाद का अवतार न हुआ हो लेकिन पति पत्नी के बीच का संबध इतना प्रगाड हो गया था कि अब इस संबध को औलाद की लालसा दरार पैदा करने में नाकामयाब लगती थी ........हालांकि मां बाप जरुर अब इस बात का सपना संजोने लगे थे कि बेटा दूसरी शादी कर ले और उन्हे उनके वंश को चलाने वाला दे दे ........और इसी के साथ गुजर गए दस साल ......लेकिन इन दस सालों में कहीं न वो बात जो एक स्त्री को मां बनाती है जिसके कारण एक महिला को ममता की मूर्ति कहा जाता है वो अमर के पत्नी में गहरा गई थी........अमर औऱ उसकी पत्नी ने हर वो कोशिश की जिससे उनकी सूनी गोद भर सकती थी लेकिन शायद वो कोशिशे भी उनसे रुठी हुई थी तभी तो ......जब वो डाक्टरों के पास गए तो डाक्टरों ने अमर को बताया कि उसकी पत्नी के बच्चे दानी की नस कटी हुई है और वो इस जिंदगी में तो मां नही बन सकती है ......शायद इस बात से अमर की पत्नी ने जरुर उसे इस बात के लिए तैयार कर दिया था कि वो अब मां नही बन सकती थी लेकिन अब भी उसके मन औलाद की चाहत तो थी ही अमर की बातों में भी कहीं न कही ये नजर आता था कि उसकी हसरत है कि उसे कोई पापा कहने वाला हो ........काफी सोचने समझने और ना नुकुर के बाद अमर दूसरी शादी के लिए तैयार हुआ ........औऱ इसके लिए चुनी गई एक ऐसी लडकी जिसकी उम्र थी सिर्फ बाइस साल जबकि अमर पैतालिस साल का था .......हर किसी जवान लडकी की हसरत औऱ सपना होता है कि उसकी डोली एक ऐसा शख्स ले जाए जो उसकी हम उम्र हो और जिसके दिल में अगर किसी महिला के प्रति प्यार हो तो वो हो सिर्फ वह लेकिन यहां तो पहले से ही विवाहित था लेकिन उस लडकी के सपने से कही ज्यादा उसकी गरीबी भारी थी जिसके बोझ तले उसके सपने दब चुके थे औऱ वो एक ऐसे व्यक्ति के साथ ब्याह दी गई थी जिसके म्यान में पहले से एक तलवार थी ..........दिल से नही सही देह ही सही लेकिन करना तो सब कुछ पडता है भले ही वो दिल से हो या फिर न ,शायद समाज में असलियत से कहीं ज्यादा औपचारिकताओं का महत्व है ......सब कुछ वही हुआ जो पहली ब्याह कर जाने वाली किसी लडकी के साथ होता है और चार महीने बाद ही सबकी आखे चमक से भर उठी थी क्योंकि जिस उम्मीद की तलाश की जा रही थी अब वो थोडी हकीकत बनने लगी थी मतलब अमर की दूसरी पत्नी मां बनने वाली थी और एक साल बाद घर में किलकारी गूंजने लगी थी ........दो साल बाद अमर दो बच्चों का बाप बन चुका था ........जहां एक तरफ किसी की जरुरत पूरी हो गई थी तो कोई अब जरुरत नही रह गई थी ....बच्चे पैदा करने के बाद भी ऐसा लगता था कि वो उनकी सौतेली मां है इसलिए नही कि वो ऐसा व्यवहार करती थी बल्कि इसलिए कि उसे बच्चों के साथ किसी तरह का व्यवहार करने ही नही दिया जाता था ........औऱ फिर एक दिन पता चला कि उसे टीवी हो गई है ........इलाज संभव था लेकिन न तो अमर ने उसे कहीं दिखाने की जरुरत समझी और न ही उसकी पत्नी ने ........घऱ की बूढी आखें इतनी कमजोर हो चुकी थी कि अब वो थोडा ही बहुत देख सकती थी आवाज इतनी धीमी हो चुकी थी कि जिसकों उन्होने बोलना सिखाया था अब उनके कान उनकी आवाज को नही सुन पाते थे ......और धीरे धीरे उसकी हालत खराब होती जा रही थी ........शायद वो उस घर के लिए एक इंसान या सदस्य नही थी बल्कि एक बच्चे देने वाली मशीन थी जिसने अपना काम पूरा कर दिया था और अब उसका कोई काम नही रह गया था और फिर एक दिन वो टीवी से तडप तडप कर मर गई ........लेकिन घर के किसी सदस्य को कोई फर्क नही पडा .........वो मर चुकी थी बच्चे देने वाली मशीन ........घर में किलकारियां भी गूंज रही थी औऱ उनकी आवाजें भी जो कभी इस बात की गुहार उस खुदा से लगाती थी कि वो उनके घर में कोई वारिस भेज दे.........लेकिन इन सबके बावजूद वो नही थी जिसके दूध की ताकत से वो किलकारियां गूंज रही थी .........यहां पर भी थी दो औरतें और एक पुरुष एक सवर गई जिंदगी तो दूसरी की जिंदगी ही नही रही ........

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