आज के पहले ये तुम्हारी थी जिंदगी
हमने तो इसलिए ही संवारी थी जिंदगी
जीना अगर था देखना, तो उस वक्त देखते
सोलह बरस की जब कंवारी थी जिंदगी
जब तक तलब न थी कि मैं जिंदा यहां रहूं
तब तक मेरे इस जिस्म पर भारी थी जिंदगी
बुधवार, 25 मार्च 2009
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