बुधवार, 25 मार्च 2009

आज के पहले ये तुम्हारी थी जिंदगी
हमने तो इसलिए ही संवारी थी जिंदगी
जीना अगर था देखना, तो उस वक्त देखते
सोलह बरस की जब कंवारी थी जिंदगी
जब तक तलब न थी कि मैं जिंदा यहां रहूं
तब तक मेरे इस जिस्म पर भारी थी जिंदगी

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